छठ पूजा क्या है और यह क्यों मनाया जाता है? : कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाई जाने वाला पर्व ‘छठ‘ भगवान सूर्य को समर्पित है. वर्षों से मनाया जाने वाला यह पर्व 4 दिनों तक चलता है और इसे काफी कठिन पलों में से एक माना जाता है. सूर्य उपासना का यह अनुपम लोक पर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के कई क्षेत्रों में मनाया जाता है.
छठ पूजा भारत के कई राज्यों में मनाया जाने वाला एक प्रसिद्ध त्योहार है फिर भी यह प्रमुख रूप से बिहारियों का सबसे बड़ा पर्व है तथा उनकी संस्कृति है. यहाँ के लोग इस पर्व को बड़े धूमधाम से मनाते हैं. यह भारत का एक ऐसा पर्व है जो वैदिक काल से चला आ रहा है और यह बिहार की संस्कृति का एक अहम् हिस्सा बन चुका है.
आस्था का सबसे प्रसिद्ध लोकपर्व छठ का सिर्फ धार्मिक महत्व नहीं है इसके पीछे कई वैज्ञानिक महत्व भी है जिसको आपको समझना चाहिए. आपको बता दें कि छठ पूजा का वैज्ञानिक इतिहास वैदिक काल से है. प्राचीन काल के ऋषि-मुनि इस पद्धति का उपयोग करके सूर्य के प्रकाश से ऊर्जा प्राप्त करने में सक्षम थे.
छठ पूजा क्या है इसके बारे में पौराणिक कथा, महत्व और अनुष्ठानों के बारे में जानने – समझने के लिए कृपया हमारा यह आर्टिकल पूरा पढ़ें, यहाँ पूरी जानकारी विस्तारपूर्वक दी जा रही है.
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छठ पूजा क्या है?
छठ एक त्योहार है पवित्रता, भक्ति और सूर्य भगवान को प्रार्थना करने से सम्बंधित है. यह कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को भारत के कई राज्यों में मनाया जाने वाला एक प्रसिद्ध त्योहार है. मुख्य रूप से यह पर्व बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल आदी में मनाया जाता है. धीरे-धीरे यह पर्व बाद में प्रवासी भारतीयों के साथ-साथ विश्व भर में प्रसिद्ध और प्रचलित हो गया है.
भारत में छठ सूर्योपासना के लिए प्रसिद्ध पर्व है. सुख समृद्धि श्रेष्ठ संतान तथा मनोकामना की पूर्ति का पर्व छठ भगवान सूर्य की आराधना का पर्व है. कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी को मनाये जाने के कारण इस व्रत को छठ व्रत कहा जाता है. इस पर्व में सूर्य देव की पूजा की जाती है उन्हें अर्घ्य दिया जाता है और इसके साथ-साथ छठी मैया की भी पूजा होती है.
छठ 4 दिनों तक चलनेवाला त्यौहार है. यह पर्व शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से शुरू होता है और सप्तमी तिथि को इसका समापन होता है. यह पर्व चतुर्थी तिथि को ‘नहाय खाय’ से शुरू होता है जिसमें उपासक अपने आप को शुद्ध करता है.
इसके बाद पंचमी तिथि को खरना व्रत होता है इस दिन संध्या काल में उपासक प्रसाद के रूप में शुद्ध और सात्विक भोजन ग्रहण करता है और अगले 36 घंटे तक निर्जला व्रत रखता है.
छठ के सबसे कठिन और तीसरे दिन को उपासक एक कठोर उपवास रखते हैं, जहां वे न तो पानी पीते हैं और न ही भोजन करते हैं. इस दिन संध्या अर्ध्य होता है और इसके अगले दिन यानि चौथे दिन सूर्योदय अर्ध्य के साथ इस पर्व का समापन होता है.
छठ पूजा साल में दो बार मनाया जाता है एक चैत्र मास में और दुसरा कार्तिक मास में. कार्तिक मास शुक्ल पक्ष में ज्यादा धूमधाम से अधिकतर लोगों द्वारा इस पर्व को मनाया जाता है. इस व्रत को स्त्री और पुरुष समान रूप कर सकते हैं किन्तु देखा जाता है कि अधिकांश महिलायें ही इस व्रत को करती हैं.
छठ पर्व क्यों मनाया जाता है?
पारिवारिक सुख समृद्धि तथा मनोवांछित फल के प्राप्ति हेतु व्रती इस व्रत को कठोर नियमों का पालन करते हुए किया जाता है. मान्यता के अनुसार छठ माता संतानों की रक्षा करती हैं और उन्हें दीर्घायु प्रदान करती है.
इस व्रत में सूर्य देवता की पूजा की जाती है जो प्रत्यक्ष दिखते हैं और सभी प्राणियों के जीवन के आधार हैं और यह माना जाता है कि छठ पूजा की रस्म प्राचीन वैदिक ग्रंथों की हो सकती है.
हमारे वेदों – पुराणों में भी सूर्य देवता की पूजा और इसी तरह के अनुष्ठानों का वर्णन मिलता है. सूर्य की पूजा वैदिक काल से काफी पहले से ही होती आ रही है. भगवान् गणेश, शिव, विष्णु, देवी दुर्गा की ही भांति भगवान् सूर्य भी हिन्दुओं के प्रमुख देवता माने जाते हैं.
भगवान सूर्य सभी पर उपकार करने वाले अत्यंत दयालु देव हैं. वह सबको जीवन, तेज, और सौभाग्य प्रदान करते हैं. सूर्य की उपासना करने से मनुष्य को सभी तरह के रोगों से छुटकारा मिल जाता है तथा वे पूरे संसार की रक्षा करने वाले हैं.
छठ पर्व की शुरुआत
छठ पर्व कैसे शुरू हुआ है इसे लेकर अलग-अलग मान्यताएं और कहानियां लोगों के बीच प्रचलित है. वास्तव में छठ पूजा की सटीक उत्पत्ति अपरिभाषित और अस्पष्ट है, कुछ का मानना है कि यह हिंदू महाकाव्यों, रामायण और महाभारत से पहले की है.
इसकी कई कथायें हैं जिसमें से एक इतिहास भगवान राम की कहानी है जिसके अनुसार भगवान राम और माता सीता ने उपवास रखा था और 14 साल के वनवास से अयोध्या लौटने के बाद अपने राज्याभिषेक के दौरान शुक्ल पक्ष में कार्तिक के महीने में भगवान सूर्य की पूजा की थी.
इससे सम्बंधित एक और महाभारत कालीन कथा प्रचलित है जिसके अनुसार उल्लेखित है कि कैसे द्रौपदी और पांडवों ने भी अपना राज्य वापस पाने के लिए इसी तरह की पूजा की थी. इससे सम्बंधित अन्य और भी कई धार्मिक कथायें और मान्यतायें प्रचलन में हैं लेकिन इसके आलावा छठ पूजा का वैज्ञानिक महत्व भी काफी है.
सूर्य नमस्कार का नाम आपने जरूर सुना होगा और यह विधि केवल सूर्य की आराधना भर नहीं है. यह प्राचीन योगासन विद्य़ा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. कहते हैं सूर्य नमस्कार योगासनों में सर्वश्रेष्ठ है क्योंकि इसके दैनिक अभ्यास से अनगिनत स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है.
इसलिए कहा जाता है कि भगवान् सूर्य आरोग्यता प्रदान करनेवाले हैं. ऐसे कई कारणों से प्राचीन काल से सूर्य देव की आराधना कई विधियों से होती आ रही है और छठ पर्व भी इसी श्रृंखला का एक रूप है.
माना जाता है कि पानी में डुबकी लगाने और शरीर को सूरज के संपर्क में लाने से सौर जैव बिजली का प्रवाह बढ़ता है जिससे मानव शरीर की कार्यक्षमता में सुधार होता है और छठ पर्व के माध्यम से यह सब देखा जा सकता है. कहते हैं कि छठ पूजा शरीर से हानिकारक बैक्टीरिया और वायरस को भी खत्म करने में मदद करती है.
अन्य महत्वपूर्ण बात
छठ पर्व जो भगवान सूर्य और छठ माता को समर्पित है जो कि 4 दिन का उत्सव होता है. यह कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को शुरू होकर कार्तिक शुक्ल सप्तमी को समाप्त होता है. पहला दिन नहाए खाए दूसरा दिन खरना तीसरा और मुख्य दिन संध्या अर्घ्य और चौथा दिन सूर्योदय अर्ध्य के नाम से जाना जाता है.
पृथ्वी पर जीवन को बनाए रखने के लिए भगवान सूर्य का धन्यवाद करने के लिए यह पूजा की जाती है. संध्या अर्घ्य के दिन तालाब या नदी में डुबकी लेकर सूर्य को श्रद्धांजलि देने हेतु जल अर्पण किया जाता है.
खासकर महिलायें भगवान सूर्य और छठ माता का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए इस दिन उपवास रखती है. सुख समृद्धि की प्राप्ति के लिए भगवान सूर्य की पूजा की जाती है जिन्हें ऊर्जा के रूप माना जाता है.
ऐसी मान्यता है कि छठ पर्व पर व्रत करने वाली महिलाओं को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है और संतान की कुशलता के लिए सामान्य तौर पर महिलाएं इस व्रत को रखती है.