Gautam buddha biography in Hindi- Hi friends, आज के इस आर्टिकल में हम गौतम बुद्ध का जीवन परिचय के बारे में जानेंगे. शुरुआत मैं स्वामी विवेकानंद जी के महान शब्दों के साथ करना चाहता हूँ, उनके अनुसार “बुद्ध ने द्वैतवादी देवता, ईश्वर आदि की किंचित भी चिंता नहीं की, और जिन्हें नास्तिक तथा भौतिकवादी कहा गया है, वह एक साधारण बकरी तक के लिए प्राण देने को प्रस्तुत थे! उन्होंने मानव जाती को सर्वोच्च नैतिकता का प्रचार किया. जहाँ कहीं तुम किसी प्रकार का नीतिविधान पाओगे, वहीँ देखोगे कि उनका प्रभाव, उनका प्रकाश जगमगा रहा है.” – स्वामी विवेकानंद
यदि मैं अपनी बात करूं तो व्यक्तिगत रूप से मेरे मन में भी भगवान् बुद्ध के लिए आपार श्रधा और भक्ति है. बुद्ध चाहे आस्तिक हों या नास्तिक मुझे इससे कोई मतलब नहीं है, मैं तो केवल इतना जानता हूँ कि इस विशाल ह्रदय राजकुमार ने अपने सभी सुखों और ऐश्वर्यों को तिलांजली देकर, सभी नर – नारी तथा जीवों के कल्याण हेतु हजारों कष्ट झेलें, भिक्षाटन कर जीवन निर्वाह किया. बुद्ध को अपनी मुक्ति की चिंता नहीं थी वो तो बस सभी का कल्याण चाहते थे.
बौद्ध धर्म गौतम बुद्ध की शिक्षाओं पर आधारित है. गौतम बुद्ध एक प्रसिद्ध धर्म सुधारक और महान दार्शनिक थे. अपने विवाह के बाद, दुनिया को बुढ़ापा, मृत्यु और दुःख से मुक्त करने और सच्चे दिव्य ज्ञान की खोज में गौतम बुद्ध ने अपने बेटे और पत्नी को छोड़ दिया और रात में महल छोड़ कर अपनी यात्रा में निकल पड़े.
उन्होंने कई वर्षों की घोर तपस्या के बाद बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त किया, उन्होंने अपने जीवन में कई चीजों को आत्मसात किया और वे सिद्धार्थ से गौतम बुद्ध हो गए.
बुद्ध एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है – “जागृत”. बुद्ध शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है प्रबुद्ध, ज्ञाता. महात्मा बुद्ध प्रबुद्ध समझ की स्थिति में पहुँचे जहाँ उन्होंने सत्य को समझा, मानवीय पीड़ा से मुक्त हो गए और मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र से परे चले गए. आइए जानते हैं ऐसे महात्मा बुद्ध के बारे में विस्तार से –
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Gautam buddha biography in Hindi
बुद्ध ने अपनी सभी कामनाओं पर विजय पा ली थी जिनका किसी दर्शन में विश्वास नहीं था, जिसे लोग घोर जड़वादी कहते हैं उन्हें भी वही पूर्णावस्था प्राप्त हो गयी थी, जो अन्य लोग भक्ति, योग, ज्ञान आदि मार्गों में चलकर प्राप्त करते हैं.
वर्षों तक अति कठोर साधना करने के पश्चात बोधि वृक्ष के निचे (बोध गया बिहार में स्थित) उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई और वो सिद्धार्थ से भगवान् बुद्ध कहलाये. गौतम बुद्ध जिन्हें याथार्थ में निष्काम कर्मयोगी कहना गलत न होगा आईये विस्तारपूर्वक उनके जीवनी के बारे में जानते हैं.
गौतम बुद्ध की जीवनी
गौतम बुद्ध का जन्म लुंबिनी (वर्तमान समय में यह स्थान नेपाल के कपिलवस्तु में है) में 563 ई.पू. में शाक्य नामक क्षत्रिय कुल में हुआ था. उनके पिता शुद्धोधन कपिलवस्तु नगरी के एक राजा थे. काफी आयु में उनकी एक संतान हुई. संतान का नाम रखा गया “सिद्धार्थ,” जिसका शाब्दिक अर्थ होता है “वह जो सिद्धी प्राप्ति के लिए जन्मा हो.” ज्योतिषियों ने गणना करके बताया, “यदि यह बालक संसार में रहेगा तो चक्रवर्ती राजा बनेगा और सन्यासी हो तो जगतगुरु होगा.”
उनकी माता का नाम महामाया था जो कोलीय वंश की थी और इनका निधन सिद्धार्थ के जन्म के सात दिन बाद हो गया था. इनका पालन उनकी मौसी तथा सौतेली माँ प्रजापति गौतमी द्वारा किया गया. (About Gautam Buddha in Hindi)
सिद्धार्थ का बाल्यकाल
बहुत सुन्दर, धीर – गंभीर तथा बुद्धिमान होने के कारण सभी सिद्धार्थ से स्नेह करते थे. अन्य बालकों से भिन्न उस बालक में बालसुलभ चपलता का आभाव था, कहा तो ये भी जाता है कि उसे खेलकूद भी पसंद नहीं था. जैसे – जैसे उसकी आयु बढती जा रही थी साथ ही साथ उसकी गंभीरता में भी वृद्धि होती जा रही थी. बालक की गंभीरता देखकर पिता रजा शुद्धोधन सर्वदा शंकित रहते कि कहीं यह सन्यासी न हो जाए. इसलिए वे सिद्धार्थ को हमेशा प्रफुल्लित रखने का प्रयास करते.
बाल्यकाल से ही उनके विशाल ह्रदय में सभी प्राणियों के प्रति एकसमान असीम दया भाव था. किसी भी जीव का कष्ट वो नहीं देख सकते थे चाहे वह जीव कोई कीट – पतंग ही क्यों न हो. यही कारण था कि इस महात्मा के बारे में स्वामी विवेकानन्द जी के मुख से ये वाणी निकली थी – “उनके विशाल ह्रदय का सहस्त्रांश पाकर भी मैं स्वयं को धन्य मानता.”
सिद्धार्थ का विवाह
सिद्धार्थ का विवाह एक अत्यंत ही रूपवती कन्या यशोधरा के साथ हुआ. समय बीतता गया फिर भी उनके स्वभाव और गंभीर प्रवृत्ति में किसी प्रकार का बदलाव नहीं आया. उनके मन में तीव्र वैराग्यभाव को बढ़ता देख पिता शुद्धोधन ने उन्हें आमोद – प्रमोद में मग्न रखने के लिए हर संभव प्रयास किया किन्तु सिद्धार्थ अन्य लोगों के सामान रस नहीं ले पाते थे.
यशोधरा ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम राहुल रखा गया. सिद्धार्थ को कभी भी गृहस्थ जीवन रास न आया. उनके अनुसार स्त्री – पुत्र, परिवार आदि सांसारिक प्रपंच एक प्रकार का बंधन था.
सिद्धार्थ का गृहत्याग (महाभिनिष्क्रमण)
एक जर्जर शरीरधारी वृद्ध, एक रोग ग्रस्त व्यक्ति, एक मृत व्यक्ति तथा एक सन्यासी के दृश्यों ने सिद्धार्थ के मन में संसार के प्रति तीव्र घृणा पैदा कर दी. इन दृश्यों ने उनके मन में प्रबल वैराग्य भाव का संचार कर दिया. जब उन्हें जीवन की सच्चाई का पता चला तो वे बेचैन हो उठे. मनुष्य के दुखों का कोई अंत नहीं है; एक दुख को दूर करो तो दूसरा दुख स्वतः ही आकर प्रकट हो जाता है.
प्राणियों का दुख देखकर उनका करुणायुक्त मन द्रवीभूत हो उठा. उनका चिन्तनशील मन में हलचल मच रही थी कि कैसे किसी के जीवन में आये दुखों का मोचन किया जाये. उनका विचार जहाँ तक गया वहां तक वे सोंचते रहे.
जब सिद्धार्थ को सांसारिक आनंदों की व्यर्थता में पूर्ण विश्वास हो गया तो उन्होंने सोंचा कि मैं भी सन्यासी होकर तपस्या करूँगा और देखूंगा कि जरा -व्याधि -मृत्यु से छुटकारा पाने का कोई उपाय है या नहीं (ऐसा भाव उनके अन्दर एक शांतचित्त सन्यासी का निर्विकार भाव देखकर आया था). उन्होंने इस रहष्य को जानने के लिए संसार छोड़ने का मन बना लिया.
एक दिन अर्धरात्रि को जब महल में सभी सो रहे थे, चुपके से सिद्धार्थ पत्नी और बच्चे को सोता छोड़ सत्य की खोज के लिए घर छोड़ कर प्रस्थान किया. सिद्धार्थ का यह गृहत्याग महाभिनिष्क्रमण के नाम से जाना जाता है. (About Gautam Buddha in Hindi)
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सिद्धार्थ का योग साधना
सांसारिक मोह के बंधनों को तोड़कर त्यागी के वेश में सिद्धार्थ तपस्या के लिए चल पड़े. भिक्षाटन कर घुमते – घुमते वे आलार कलाम और उद्दक अथवा रामपुत्र के पास पहुंचे. उनसे योग साधना, सामधी आदि सिखा. इसतरह वे दो आचार्यों से निर्देशित होते हुए तथा घुमते हुए बिताये. उन दिनों में लोग तरह – तरह की कठोर तपस्या करते थे जब उन्हें इस कठोर तपस्या के कारण थोड़ी सी अनुभूति होती थी तो वे अपने को सिद्ध समझकर उसका प्रचार करने लगते थे.
सिद्धार्थ इसप्रकार की श्रेणी के अनेक योगियों का शिष्यत्व स्वीकार किया तथा उनके मतों के अनुसार सिद्धि प्राप्त की. सिद्धार्थ को यह समझ आ गया था कि इसप्रकार की सिद्धि या अनुभूति किसी मनुष्य को जन्म – मरण के चक्र से छुटकारा नहीं दिला सकती है. इससे उन्हें संतोष नहीं हुआ. उनकी मन की अशांति और बढ़ गयी. इस दौरान वे संयमपूर्वक रहते हुए कठोरतम प्रायश्चित तथा सत्य की प्राप्ति के निरर्थक प्रयास कर चुके थे.
विभिन्न स्थानों पर घुमते – घुमते अंत में वे निराश होकर यह निश्चय किया की सत्य की खोज के लिए उन्हें स्वयं ही ध्यान – तपस्या आदि करके कोई उपाय ढूंढ निकलना होगा. आखिर में उन्होंने निरंजना में स्नान किया और आधुनिक बोधगया में एक पीपल के पेड़ के निचे ध्यानमग्न हो गये.
बुद्धत्व की प्राप्ति : सिद्धार्थ से बुद्ध
दिन – रात आहार- निद्रा आदि त्यागकर सिद्धार्थ एकासन में बैठे ध्यान करने लगे. इन सब के कारण उनका शारीर अत्यंत दुर्बल हो गया. इतना दुर्बल कि एक दिन स्नान करने के बाद जब वे नदी के ताट पर चढ़ रहे थे उस दौरान वे मूर्छित हो गये. जब उनकी मूर्छा टूटी तो वे सोंचे कि इसप्रकार अपना स्वास्थ्य खराब करके सिद्धिलाभ नहीं किया जा सकता है अतः वे पुनः आहार ग्रहण करने लगे और धीरे – धीरे उनका शरीर सबल होने लगा.
फिर ध्यान करते – करते एक दिन उनका मन निर्वाण – सागर में डूब गया, उन्हें बुद्धत्व की प्राप्ति हुई. उन्हें सर्वोच्च ज्ञान तथा बोधि की प्राप्ति हुई. असीम आनंद और शांति से उनका ह्रदय परिपूर्ण हो उठा. जिस सत्य को वे पाना चाहते थे उन्हें उस सत्य की प्राप्ति हो गयी. इसके बाद सिद्धार्थ को बुद्ध (प्रबुद्ध व्यक्ति) तथा तथागत (जिसने सत्य को पा लिया हो) कहा जाने लगा. (About Gautam Buddha in Hindi)
बुद्ध का उपदेश (धर्मोपदेश)
ऐसा माना जाता है कि बुद्ध ने अपना पहला धर्मोपदेश बनारस के निकट सारनाथ में दिया. शाक्यवंश के अनेक लोगों ने संन्यास लेकर बुद्ध का अनुसरण करने लगे. गौतम बुद्ध का पुत्र राहुल भी सन्यासी बन गया. इसप्रकार बुद्धदेव उत्तरी भारत में सर्वत्र भ्रमण कर धर्मोपदेश देने लगे. इनकी कृपा से अनेक लोगों को सिद्धिलाभ हुआ.
उन्होंने अपना उपदेश संस्कृत के बजाय सीधी सरल भाषा (लोकभाषा) पाली में दिया. उनके अनुसार विश्व दुखों से भरा है और इसका कारण तृष्णा है, तृष्णा का अंत ही मनुष्यों को दुखों से छुटकारा पाने का उपाय है.
बुद्ध ने सुनिर्दिष्ट सिद्धांतों की बजाय तार्किक आध्यात्मिक विकास की बात की. उन्होंने ही वेदों की अलन्घ्यता का खंडन किया, अर्थहीन कर्मकांडों की निंदा की, पशुबलि का साहसपूर्वक विरोध किया, जाती प्रथा तथा पुरोहित वर्ग के प्रमुख को चुनौती दी.
बुद्ध को अज्ञेयवादी कहा जाता है क्योंकि उन्होंने ईश्वर के बारे में अज्ञेयवादी दृष्टिकोण अपनाया. इस विषय में वे कभी प्रश्न ही नहीं करते थे.
” सभी वस्तुएं क्षरनशील हैं और तुम्हे अपना पथ प्रदर्शक स्वयं होना चाहिए.” – गौतम बुद्ध
अस्सी (80) वर्ष की आयु में उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में एक साल वृक्ष के निचे उन्हें महानिर्वाण की प्राप्ति हुई.
बुद्ध के अनुसार :
- विश्व दुखमय है
- दुख का कारण तृष्णा है
- तृष्णा के त्याग से ही दुःख निवारण संभव है
- आष्टांगिक मार्ग (सम्यक दृष्टि, सम्यक संकल्प, सम्यक वाणी, सम्यक कर्म, सम्यक आजीव, सम्यक व्यायाम, सम्यक स्मृति तथा सम्यक समाधी) व्यक्ति इस पथ का अनुकरण कर निर्वाण प्राप्त कर सकता है.
बुद्ध का सिद्धांत
गौतम बुद्ध के द्वारा दिखाया गया मार्ग तार्किक तथा प्रायोगिक नीति दर्शन है. उन्होंने ईश्वर, आत्मा जैसे गठित प्रश्नों पर उलझने से इनकार कर दिया. पूछे जाने पर वे इस विषय पर मौन ही रहते या देवताओं को भी कर्म के सिद्धांत के अंतर्गत होने की बात कही. उन्होंने कर्म के सिद्धांत पर काफी बल दिया, उनके अनुसार “हम अपने ही कर्म – फल प्राप्ति के लिए बार – बार जन्म लेते हैं. यही कर्म का सिद्धांत है.”
गौतम बुद्ध के अनुसार मनुष्यों का सभी वेदनाओं का अंत का एकमात्र उपाय – निर्वाण प्राप्ति है. मानव की वर्तमान स्तिथि उसके अपने कर्म पर निर्भर है. चरम शांति का अनुभव वही व्यक्ति कर सकता है जो व्यक्ति सभी तृष्णाओं से दूर है. उनका संपूर्ण जीवन हमें ‘बहुजनहिताय बहुजनसुखाय’ का सन्देश देता है.
मैं अपना लेख अब यहीं पर समाप्त करता हूँ और आशा करता हूँ आज का ये लेख आपको जरुर पसंद आई होगी. इस लेख ‘About Gautam Buddha in Hindi’ के बारे में यदि आप अपना कोई निजी विचार रखना चाहते हैं तो आप हमें comment कर सकते हैं.