Kasturi Mrig – कस्तूरी मृग – अपनी महक से दुनिया को महकाता है, लेकिन खुद उससे बेखबर रहता है. यह जीव बहुत कम बोलता है और सभी परिस्थितियों में रह लेता है. नर या मादा दोनों के सींग नहीं होते यह इनके सीधेसादे होने का प्रमाण है. इन्हें एकांत में रहना पसंद होता है. कस्तूरी के कारण यह बर्फ में भी आराम से गर्माहट महसूस कर लेता है.
क्या आप जानते कि इसका नाम कस्तूरी हिरण क्यों पड़ा है. क्योंकि नर कस्तूरी हिरण की नाभि में ग्रंथियां पायी जाती हैं जिनसे पानी जैसा तरल पदार्थ निकलता रहता है जो सूख जाने पर कस्तूरी कहलाता है.
कस्तूरी में तीक्ष्ण गंध होती है. ज्ञात हो कि कस्तूरी केवल नर हिरण में ही पाया जाता है. इस मृग की ख़ास पहचान इसकी नाभि से निकलनेवाली मनमोहक खुशबू ही है. कस्तूरी का इस्तेमाल प्राचीन काल से ही इत्र के लिए किया जाता रहा है. इत्र के आलावा कई औषधियों में भी कस्तूरी का इस्तेमाल होता है. यही कारण है कि इसकी मांग बाज़ारों में काफी है.
इसका शिकार प्रतिबंधित है फिर भी शिकारी अवैध रूप से इसका शिकार कस्तूरी प्राप्त करने के लिए करते हैं. यह लुप्तप्राय श्रेणी की प्रजाति है.
आज के इस विशेष लेख में हम आपको कस्तूरी मृग के बारे में बताने जा रहे हैं.
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Kasturi Mrig क्या है?
कस्तूरी मृग एक छोटा हिरण होता है. इसकी एक विशेष पहचान यह है कि नर और मादा हिरण दोनों में सींग नहीं होते. जबकि दूसरी जाति के हिरणों के सींग होते हैं. इसके दो दांत बहार की ओर निकले होते हैं. इसकी पीछे की टाँगे आगे की टांगों से बड़ी होती है और कान औरों से बड़े होते हैं. इसकी दुम छोटी होती है तथा इसके खुर चट्टानों पर कूदने के लिए पूरी तरह से उपयुक्त होते हैं. कस्तूरी मृग को ‘Musk deer’ कहा जाता है.
विकिपीडिया से प्राप्त जानकारी के अनुसार कस्तूरी मृग देखने में हिरण के समान ही प्रतीत होते हैं और आमतौर पर इस जीव को हिरण ही समझा जाता है किन्तु जीववैज्ञानिक दृष्टिकोण से यह हिरणों के वंश का नहीं है. हिरण या मृग वैज्ञानिक दृष्टि से सर्विडाए (Cervidae) नामक जीववैज्ञानिक कुल के सदस्य होते हैं जबकि कस्तूरी मोस्किडाए (Moschidae) नामक जीववैज्ञानिक कुल का एकमात्र वंश है.
आप भी यदि गौर करेंगे तो पायेंगे कि असली हिरणों में कस्तूरी नहीं पाये जाते हैं जबकि इनमें कस्तूरी ग्रंथी होती है. इसी कस्तूरी को प्राप्त करने के लिए इस हिरण को मार डाला जाता है. ज्ञात हो कि इसका बाजार मूल्य बहुत अधिक होता है. संसार के विभिन्न भागों में इसकी बहुत मांग है, क्योंकि महंगे से महंगे इत्र की महक कस्तूरी की महक के सामने फीकी है.
कस्तूरी मृग कहाँ पाया जाता है?
कस्तूरी मृग दस हजार फ़ीट से भी ऊंचाई पर रहते हैं. जब पहाड़ बर्फ से ढंका होता है तो भी कस्तूरी हिरण वहां बड़े आराम से घुमते रहते हैं क्योंकि इनके शरीर में कस्तूरी होती है, जो बहुत गर्म होती है. यह साइबेरिया से लेकर हिमालय तक के पर्वतीय क्षेत्रों में पाया जा सकता है.
कस्तूरी मृग शाकाहारी होते हैं और यह प्रायः पहाड़ी तथा वन के वातावरण में रहते हैं. कस्तूरी मृग निम्न जगहों पर पाये जाते हैं –
- साइबेरिया
- चीन
- तिब्बत
- मंगोलिया
- भारत
- नेपाल
- पाकिस्तान
- जापान सागर और ओखोटस्क सागर के किनारे तक भी देखे जा सकते हैं.
कस्तूरी मृग कैसा प्राणी है?
हिरण ज्यादातर झुण्ड में रहते हैं, लेकिन कस्तूरी हिरण अकेला रहना पसंद करता है. वे एकांत और शर्मीले किस्म के जानवर हैं. वह बहुत कम बोलता है लेकिन इसे किसी तरह पकड़ लिया जाये या फिर वह किसी तरह खुद फंस जाये तो बराबर चिल्लाता रहता है.
इसका शिकार करना कोई सरल काम नहीं है. यह तुरंत हाथ नहीं आता और धीमी सी आहट से भी चौकड़ी भरता हुआ आँख से ओझल हो जाता है. अपने ऊपर आने वाले खतरों से यह पूरी तरह सजग होता है. जब कस्तूरी की सुगंध बाहर वातावरण में फैलती है तो मादा उस गंध से मोहित होकर प्रजनन के लिए नर के पास आती है.
इसकी शारीरिक बनावट पर यदि प्रकाश डाला जाये तो इसका रंग भूरा कत्थई होता है. अन्य हिरणों की तरह इसके सींग नहीं होते हैं तथा इसकी पूँछ छोटी होती है. वे लगभग 80 से 100 सेमी लंबे, ऊंचाई लगभग 50 से 60 सेंटीमीटर तक होती है.
कस्तूरी का प्रयोग कहाँ होता है?
कस्तूरी का प्रयोग इत्र, तेल और विभिन्न खुश्बुओं में होता है. राजा और नवाब इसे पान के साथ प्रयोग करते थे. कहते हैं कस्तूरी का दवा के रूप में प्रयोग किये जाने का इतिहास मौजूद है. ज्ञात हो कि कस्तुरी को चीनी चिकित्सा में बहुत महत्व दिया जाता है. यह कई प्रकार के रोगों के उपचार में कारगर माना जाता है.
अन्य महत्वपूर्ण बात
चूँकि मृग से कस्तूरी प्राप्त करने के लिए इस लुप्तप्राय जीव को मारने की आवश्यकता होती है इसीलिए आज कृत्रिम कस्तूरी का प्रयोग इत्र आदि बनाने में किया जाता है. कस्तूरी मृग को संकटग्रस्त प्रजातियों में शामिल किया गया है और इसे आज संरक्षण की आवश्यकता है. यही कारण है कि इसे वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची एक में रखा गया है.
इतनी विशेषताओं के बावजूद भी कस्तूरी मृग अपने शरीर में छिपी इस गंध को नहीं पहचान पाता और इसकी खोज में भटकता रहता है, जबकि वह बहुमूल्य खुशबू खुद उसके पास शरीर में रहती है, जिसे कस्तूरी कहते हैं.
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