National Handloom Day in Hindi : हथकरघा क्षेत्र (handloom sector) भारत की सांस्कृतिक विरासत का एक अभिन्न अंग है. हथकरघा उद्योग इस देश में महत्वपूर्ण लघु उद्योगों में से एक माना जाता है. भारत के आर्थिक – सामाजिक विकास में हथकरघा क्षेत्र का महत्वपूर्ण योगदान है.
यह लोगों के लिए आजीविका का महत्वपूर्ण स्रोत होने के साथ – साथ महिला सशक्तिकरण की कुंजी है. ज्ञात हो कि आंकड़ों के मुताबिक पुरुषों की तुलना में महिला हथकरघा बुनकरों की संख्या ज्यादा है.
जैसा कि हम सभी जानते कि हमारे देश में हथकरघा उद्योग का एक विशिष्ट स्थान है और इस क्षेत्र में काफी लोगों को रोजगार प्राप्त है. देश की अर्थव्यवस्था में इसकी काफी अहम् भूमिका है.
इस देश की बुनकरों की कलात्मकता का यह उदाहरण है, हमारी समृद्ध विरासत का हिस्सा है इसीलिए तो इसके महत्व को समझते हुए हमारे देश में प्रतिवर्ष राष्ट्रिय हथकरघा दिवस (National Handloom Day) मनाने का चलन शुरू किया गया है.
क्या आपको पता है कि राष्ट्रिय हथकरघा दिवस (National Handloom Day) कब मनाया जाता है? पहला राष्ट्रीय हथकरघा दिवस कब आयोजित किया गया था? यदि आप इन सवालों का उत्तर नहीं जानते हैं और जानना चाहते हैं तो कृपया इस लेख के साथ अंत तक जरूर बने रहें.
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National Handloom Day कब मनाया जाता है?
National Handloom Day अर्थात राष्ट्रिय हथकरघा दिवस देश में प्रत्येक वर्ष 7 अगस्त को मनाया जाता है. यहाँ पर एक महत्वपूर्ण बात आपको समझना जरुरी है कि राष्ट्रिय हथकरघा दिवस मनाने के लिए 7 अगस्त को ही क्यों चुना गया. इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए हमें इतिहास में थोड़ा पीछे जाना होगा.
7 अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मनाया जाता है इसके पीछे कुछ कारण है. यह वही दिन है जिस दिन वर्ष 1905 में ब्रिटिश सरकार द्वारा बंगाल के विभाजन के विरोध में स्वदेशी आंदोलन शुरू हुआ था और इस आंदोलन के फलस्वरूप स्वदेशी उद्योगों खासकर हथकरघा बुनकरों को काफी प्रोत्साहन मिला था.
इसी स्वदेशी आंदोलन की स्मृति में 7 अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के रूप में चुना गया ताकि हथकरघा बुनकरों को बढ़ावा मिल सके खासकर जो लघु और मध्यम बुनकर हैं. स्वदेशी आंदोलन के उपलक्ष्य में राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मनाने के लिए 7 अगस्त को चुना गया.
पहला राष्ट्रीय हथकरघा दिवस कब मनाया गया था?
पहला राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मनाये जाने की कहानी बहुत पुरानी नहीं है. यह सर्वप्रथम 7 अगस्त 2015 में आयोजित किया गया था. इसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा चेन्नई में मद्रास विश्वविद्यालय के शताब्दी हॉल में किया गया था जिसके बाद से यह प्रत्येक वर्ष मनाया जाता है.
हथकरघा दिवस घोषित इसलिए किया गया ताकि इस उद्योग के महत्व के बारे में देश के लोगों के बीच जागरूकता पैदा किया जा सके.
राष्ट्रीय हथकरघा दिवस पर एक नजर
- दिवस – राष्ट्रिय हथकरघा दिवस (National Handloom Day).
- कब मनाया जाता है – 7 अगस्त.
- पहला राष्ट्रीय हथकरघा दिवस – 7 अगस्त 2015
- उद्घाटन – प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पहला राष्ट्रिय हथकरघा दिवस का उद्घाटन चेन्नई में किया गया.
- उद्देश्य – इसके महत्व के बारे में जागरूकता पैदा करना.
- 7 अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस क्यों मनाया जाता है? – इसी दिन वर्ष 1905 में स्वदेशी आंदोलन शुरू हुआ था इसी के उपलक्ष्य में राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मनाने के लिए 7 अगस्त को चुना गया.
हथकरघा उद्योग का महत्व
हमारे देश की समृद्ध और विविध सांस्कृतिक विरासत में हथकरघा उद्योग के योगदान को नजरअंदाज नहीं क्या जा सकता है. भारत में कृषि के बाद इस क्षेत्र में बहुत बड़ी आबादी को रोजगार प्राप्त है. देश के लोगों के लिए आजीविका के लिए यह एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है. यह उद्योग भारत देश में सबसे पुराना कुटीर उद्योग माना जाता है.
इसके जरिये उत्कृष्ट शिल्प कौशल को देखा जा सकता है. इतिहास बताते हैं कि हमारे देश में शिल्प कौशल हज़ारों वर्षों से चली आ रही है और इस क्षेत्र में भारतीय कारीगरों को काफी महारत हासिल है.
हथकरघा वास्तव में पारम्परिक बुनाई शिल्प है और यह उद्योग लगभग भारत के प्रत्येक राज्य में पाया जाता है. हमारे देश में ऐसे – ऐसे कलाकार हैं जो अपने हाथों से कताई, बुनाई और छपाई इतनी सुंदरता से करते हैं जिसके लिए वे विश्व प्रसिद्ध हैं.
हथकरघा दिवस के अवसर पर सरकार अथवा अन्य संगठन हथकरघा बुनाई समुदाय को सम्मानित भी करते हैं. हथकरघा बुनाई समुदाय को सम्मानित इसलिए किया जाता है क्योंकि देश के सामाजिक-आर्थिक विकास में इनका योगदान भी काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. इनके योगदान को हम कतई नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं.
इसप्रकार के कार्यक्रम, सम्मान वास्तव में क्षेत्र के हथकरघा और हस्तशिल्प उत्पादों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से काफी अहम् मानी जा सकती है.
हथकरघा क्षेत्र देश के ग्रामीण, अर्ध-ग्रामीण लोगों के लिए आजीविका का एक महत्वपूर्ण साधन तो है ही साथ ही यह हमारे देश की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को भी प्रकाशित करती है. यहाँ ऐसे – ऐसे उत्कृष्ट शिल्प कौशल से परिपूर्ण हथकरघा बुनकर अथवा श्रमिक मौजूद हैं जिनपर देश गर्व कर सकता है.
अंतिम बात : निष्कर्ष
हथकरघा क्षेत्र को हम पर्यावरण का अनुकूल मान सकते हैं जो की बाज़ारों की आवश्यकता के अनुसार लाभदायक है . इसमें बिजली का न्यूनतम उपयोग होता है साथ ही इस क्षेत्र में कम पूँजी खपत भी है.
हथकरघा दिवस वैसे बुनकरों के लिए समर्पित है जिनका योगदान देश के सामाजिक-आर्थिक विकास में काफी अहम् रहा है और यह दिवस देश के लोगों के बीच इसके प्रति जागरूकता बढ़ाने के के लिए भी काफी महत्वपूर्ण है.
यह देश के लोगों की आजीविका का महत्वपूर्ण स्रोत है और ज्ञात हो कि इस क्षेत्र में काफी महिलाएं भी शामिल हैं फलस्वरूप यह क्षेत्र उन महिलाओं को स्वावलम्बी बनाता है जिन महिलाओं ने इस क्षेत्र को अपनी आय के साधन के रूप में चुनाव किया है.
वास्तव में हथकरघा दिवस देश इसलिए मनाता है क्योंकि हम भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में उनके योगदान को महत्वपूर्ण मानते हैं.
मौजूदा दौर में जब हमारे बीच से खासकर युवा वर्गों के बीच से हथकरघा के रूप में हमारा गौरवशाली इतिहास अपना पहचान खोता जा रहा है वैसे वक़्त में इसे बचाने और लोगों के बीच जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से 7 अगस्त को मनाया जानेवाला हथकरघा दिवस सचमुच एक सराहनीय कदम है.
ध्यान रहे, हथकरघा केवल देश के लोगों के लिए आजीविका का साधन नहीं है यह तो हमारे पूर्वजों की देन है जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी चली आ रही उत्कृष्ट कौशल है; यह हमारे देश के गौरवशाली इतिहास का प्रतिक है.