Inflation यानि ‘मुद्रास्फीति’ के किसी अर्थव्यवस्था को किसप्रकार प्रभावित कर सकती है यह बात समझना आपके लिए बहुत जरुरी है. एक व्यापारी के तौर पर यह बात समझना आपके लिए और भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि यह आपके व्यापार या कंपनी को प्रभावित करती है. मुद्रास्फीति क्यों होती है, यह कहां से आती है, और मुद्रास्फीति व्यवसायों के लिए क्यों महत्वपूर्ण है? इन सभी प्रश्नों के उत्तर हम आज के इस लेख What is Inflation in Hindi में जानेंगे.
ज्ञात हो कि प्रायः मुद्रा के मूल्य में परिवर्तन होता रहता है. व्यापार चक्र (trade cycle) के कारण मूल्य-स्तर में जो परिवर्तन आते हैं उसका अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ता है. इसलिए मूल्य-स्तर में हो रहे परिवर्तनों का अध्ययन करना अनिवार्य समझा जाता है. मुद्रा के मूल्य अथवा मूल्य-स्तर में परिवर्तन के मुख्यतः दो रूप हैं –
- मुद्रा स्फीति (Inflation)
- मुद्रा-संकुचन (Deflation)
Table of Contents
What is Inflation in Hindi
मुद्रास्फीति क्या है?
मुद्रास्फीति अर्थात सामान्य कीमत स्तर का लगातार बढ़ना यानि महंगाई का लगातार बढ़ना. ये वृद्धि उपभोक्ता वस्तुओं और सेवाओं के मूल्यों में वृद्धि का होना है. इस स्तिथि में किसी अर्थव्यवस्था में सामान्य कीमत स्तर में लगातार वृद्धि होती है फलस्वरूप मुद्रा का मूल्य कम हो जाता है.
मुद्रास्फीति में एक ओर जहाँ वस्तुओं की कीमत में हर साल वृद्धि होती है वहीँ दूसरी ओर मुद्रा की कीमत कम होती जाती है. इसे एक उदहारण के द्वारा समझते हैं : मान लेते हैं वर्ष 2000 में जिस सामान को खरीदने के लिए 100 रुपया खर्च करना पड़ता था आज 2020 में उसी सामान को खरीदने के लिए 400 रुपया खर्च करना पड़ता है, अतः हम कह सकते हैं कि मुद्रास्फीति बढ़ गयी है.
मुद्रास्फीति के प्रमुख कारण?
मुद्रास्फीति के कई कारण हो सकते हैं किन्तु इसके प्रमुख रूप से दो कारण हैं:-
- Demand (मांग) और
- Supply (आपूर्ति)
वस्तुओं और सेवाओं की मांग (demand) में वृद्धि के कारण मुद्रास्फीति होती है. जब किसी वस्तु और सेवा की उपलब्धता में कमी होती है तब मांग बढती है. इसके कारण वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में वृद्धि देखने को मिलती है. यह एक simple सा logic है आपूर्ति में कमी होगी तो मांग बढ़ेगी और जब मांग बढ़ेगी तब वस्तुओं/सेवाओं की कीमत में बढ़ोतरी होगी अर्थात महंगाई बढ़ेगी.
मुद्रास्फीति के प्राथमिक कारणों में से एक कारण है किसी अर्थव्यवस्था में अतिरिक्त धन या मुद्रा की आपूर्ति. यह तब होता है जब किसी राष्ट्र में मुद्रा आपूर्ति आर्थिक वृद्धि से ऊपर हो जाता है. इसके और भी अनेकों कारण हैं जैसे – जमाखोरी, प्राकृतिक आपदा, लागत में वृद्धि, मौद्रिक नीति के कारण, बढ़ता सरकारी व्यय, उत्पादन – आपूर्ति में उतार चढ़ाव आदि.
एक व्यापारिक वैश्विक अर्थव्यवस्था में, विनिमय दर (exchange rate) भी मुद्रास्फीति की दर निर्धारित करने में एक महत्वपूर्ण कारक हो सकती है.
अर्थशास्त्र के अन्दर ‘मुद्रास्फीति’ एक कठिन विषय माना जाता है क्योंकि आसानी से इसे किसी एक परिभाषा के अन्दर परिभाषित नहीं किया जा सकता है, इसके कई कारक हो सकते हैं. अनेक विद्वानों ने इस विषय पर तरह – तरह से अपने – अपने मत रखें हैं. किन्तु जो मूल बात है वह यह है कि वस्तु और सेवा की आपूर्ति की तुलना में मांग अधिक बढ़ जाना, या कम माल के लिए अधिक धन की आपूर्ति हो जाना.
मुद्रास्फीति के कारण क्या प्रभाव पड़ते हैं?
ऐसा देखा गया है कि एक निश्चित आय वर्ग वाले लोग मुद्रास्फीति के कारण ज्यादा प्रभावित होते हैं क्योंकि इनकी आय निश्चित होती और कीमतें बढ़ी हुई होती है फलस्वरूप ऐसे आयवर्ग वाले लोगों (श्रमिक, शिक्षक, बैंक कर्मचारी आदि) की क्रय शक्ति कम हो जाती है. इसप्रकार मुद्रास्फीति किसी विकाशशील देश को ज्यादा प्रभावित करती है.
ऐसा नहीं है की मुद्रास्फीति के सिर्फ नकारात्मक प्रभाव ही होते हैं इसके कुछ सकारात्मक प्रभाव भी हैं जैसे इसके कारण उद्यमी वर्ग को लाभ मिलता है. ये जिन वस्तुओं का उत्पादन करते हैं ऐसे वस्तुओं का कीमत बढ़ी रही होती है तथा मजदूरी में भी वृद्धि होती है किन्तु उत्पादन की तुलना में कम होती है. इसप्रकार किसी उद्यमी को लाभ प्राप्त होता है. ठीक इसीतरह कृषकों को भी मुद्रास्फीति के कारण लाभ पहुँचता है.
मुद्रास्फीति के कारण होनेवाले कुछ अन्य प्रभाव
मुद्रा के मूल्यों में कमी के कारण किसी चीज को खरीदने के लिए हमें अधिक पैसे खर्च करने पड़ते हैं इसकारण हमारे बचत पर प्रतिकूल असर पड़ता है. हम बचत नहीं कर पाते हैं या हमारे द्वारा किये जाने वाले बचत पर कटौती होती है.
मुनाफाखोरी, जमाखोरी तथा मिलावट कर कुछ लालची व्यापारी वर्ग के लोग उत्पादन बेचने में करते हैं.
मुद्रा के मूल्यों में कमी होने के कारण उधार देनेवालों यानि कर्जदाताओं को नुकसान उठाना पड़ता है. इसका रोजगार पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. इसके कारण आर्थिक विषमता पनपने लगता है.
भारत में मुद्रास्फीती मापनेवाले सूचकांक
भारत में थोक मूल्य सूचकांक (Wholesale Price Index) और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index) द्वारा मुद्रास्फीति को मापा जाता है. मुद्रास्फीति मापने के लिए दोनों सूचकांको का उपयोग किया जाता है जिसमें जरूरत की लगभग सभी वस्तुओं की कीमत को लिया जाता है, जैसे खाद्य, चिकित्सा देखभाल, शिक्षा, इलेक्ट्रॉनिक्स, खनिज, बिजली, छोटे व्यवसायों को बेची जाने वाली वस्तुओं या सेवाओं आदि की कीमत में अंतर की गणना किया जाता है.
इन्हें भी देखें :
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अंतिम बात : निष्कर्ष What is Inflation in Hindi
ऐसा नहीं है कि मुद्रास्फीति को नियंत्रित नहीं किया जा सकता है. इसे नियंत्रित करने के लिए भी कई उपाय किये जा सकते हैं, जो प्रभावी हो साबित हो सकते हैं. मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए हमारा केंद्रीय बैंक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है जैसे – मुद्रा की मात्रा को नियंत्रित करके और साख को नियंत्रित करके.
मुद्रास्फीति को काबू करने के लिए और भी कई अन्य उपाय हैं जैसे – उत्पादन में वृद्धि करके, पुरानी करेन्सी की जगह नई करेन्सी लेकर सरकार को आना जिसे विमुद्रीकरण कहा जाता है आदि.
आज के लेख “What is Inflation in Hindi” में मैंने ज्यादा तकनिकी भाषा का प्रयोग करने के बजाय आसान भाषा में समझाने की कोशिश की है और उम्मीद करता हूँ कि आपको आज का topic समझ भी आ गयी होगी. हालाँकि यह एक ऐसा विषय जिसे एक लेख के अन्दर पूरा का पूरा topic cover कर पाना नामुमकिन है.
सत्य तो यह है की मुद्रास्फीति को आसानी से परिभाषित किया ही नहीं जा सकता यह एक जटिल और बहुत बड़ा विषय है. जहाँ तक संभव हो पाया मैंने आपको मूल बातें समझाने का प्रयास किया. यदि आप इस विषय पर कुछ कहना चाहते हैं तो आप हमें comment करके बता सकते हैं.