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Swami Vivekananda biography in Hindi

आज मुझे अत्यंत हर्ष है कि मैं आपके समक्ष स्वामी विवेकानंद की जीवनी प्रस्तुत कर रहा हूँ। उनके ओजस्वी विचारों और प्रेरणादायक शिक्षाओं ने असंख्य महान व्यक्तित्वों के जीवन में गहरा परिवर्तन लाया है। महात्मा गांधी ने एक बार कहा था कि जब उन्होंने पहली बार स्वामी विवेकानंद का शिकागो भाषण और उनके लेख पढ़े, तो उनके भीतर देशभक्ति और आत्मबल कई गुना बढ़ गया। सुभाषचंद्र बोस, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, जमशेदजी टाटा और डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जैसे अनेक महापुरुषों ने स्वामीजी से प्रेरणा पाकर न केवल अपने जीवन को महान बनाया, बल्कि अपने राष्ट्र का गौरव भी बढ़ाया।

स्वामी विवेकानंद के जीवन को समझना, वास्तव में आध्यात्मिक जीवन के सार को समझना है। ऐसे महान आत्मा का इस धरती पर अवतरण बहुत विरले ही होता है। अपने संपूर्ण जीवन में उन्होंने इंद्रियों से परे के दिव्य अस्तित्व की महिमा को प्रकाशित किया। उनके जीवन में हमें ज्ञान की निरंतर खोज, संघर्ष का साहस, और ऐसी गहरी व प्रज्वलित आस्था दिखाई देती है जिसने अनगिनत हृदयों को प्रेरित किया। उनका जीवन पुरुषार्थ और पवित्रता का अद्वितीय संगम था, साथ ही ऐसा देशप्रेम जो धर्म के सच्चे दर्शन में निहित था। स्वामी विवेकानंद की यात्रा निःस्वार्थ कर्म और सर्वोच्च आध्यात्मिक अनुभूति का सुंदर सामंजस्य थी।

जिन सिद्धांतों को हम वेद और उपनिषदों में केवल सैद्धांतिक रूप में पढ़ते हैं, उनका सजीव स्वरूप स्वामी विवेकानंद थे। उनके जीवन का अनुकरण करना, वास्तव में वेदांत के उच्चतम दर्शन को अपने जीवन में उतारना है। आइए, अब उनके प्रारंभिक जीवन के बारे में जानें।

Swami Vivekananda biography in Hindi
Image generated via ChatGPT (OpenAI)


स्वामी विवेकानंद का जन्म 

स्वामी विवेकानंद का जन्म सोमवार 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में एक प्रतिष्ठित बंगाली कायस्थ परिवार में हुआ। बचपन में उनका नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। उनके पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाई कोर्ट में एक सम्मानित वकील थे, जो आधुनिक विचारधारा और सामाजिक सुधार के प्रबल समर्थक थे।

उनकी माता भुवनेश्वरी देवी अत्यंत धार्मिक, श्रद्धालु और संस्कारवान महिला थीं। उनके गहन आध्यात्मिक संस्कारों और नैतिक मूल्यों ने नरेन्द्रनाथ के व्यक्तित्व को गहराई से प्रभावित किया। स्वामी विवेकानंद नौ भाई-बहनों में से एक थे और उनका बचपन ऐसे वातावरण में बीता, जहाँ परंपरा और आधुनिकता का अद्भुत संगम था।

स्वामी विवेकानंद की बाल्यावस्था 

नरेन्द्रनाथ दत्त, जिन्हें नरेंद्र या नरेन कहा जाता था, बचपन से ही तेजस्वी, जिज्ञासु और निडर स्वभाव के थे। छोटी उम्र से ही उनमें अध्यात्म के प्रति गहरी रुचि थी। वे शिव, राम और हनुमान जैसे देवताओं की प्रतिमाओं के सामने बैठकर गहन ध्यान लगाया करते थे। उनके मन में ध्यान और आध्यात्मिक विषयों के प्रति यह आकर्षण बचपन से ही था, जिसका मुख्य कारण उनकी माता द्वारा दिए गए गहरे धार्मिक संस्कार थे।

यह सर्वविदित है कि किसी भी बच्चे के चरित्र निर्माण और मानसिक विकास में माँ की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। स्वामी विवेकानंद के बाल्यकाल में यह प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। अपनी माँ की गोद में बैठकर उन्होंने पहली बार रामायण और महाभारत की प्रेरणादायक कथाएँ सुनीं। बचपन से ही भगवान श्रीराम के आदर्श जीवन से वे अत्यंत प्रभावित थे। इसी भावना से प्रेरित होकर उन्होंने मिट्टी की सीता-राम की प्रतिमा खरीदी और उसे पुष्प अर्पित कर श्रद्धापूर्वक पूजा-अर्चना की।

नरेन्द्रनाथ की आध्यात्मिक लगन  

बाल्यकाल से ही नरेंद्रनाथ (बाद में स्वामी विवेकानंद) की रुचि धार्मिक ग्रंथों और आध्यात्मिक विषयों की ओर विशेष रूप से झुकी हुई थी। उन्हें श्रीराम के जीवन की रोमांचकारी और प्रेरणादायक घटनाएँ अत्यंत प्रभावित करती थीं। जब भी आस-पास कहीं रामायण का पाठ होता, वे वहां अवश्य पहुँच जाते। यद्यपि वे कभी-कभी भगवान राम के स्थान पर भगवान शिव की पूजा भी किया करते थे, तथापि रामायण के प्रति उनकी विशेष आस्था बनी रहती थी।

प्रत्येक बालक की कुछ विशेष रुचियाँ होती हैं—कोई खेलकूद में रुचि लेता है, तो कोई संगीत या चित्रकला में। परंतु नरेंद्रनाथ की रुचि सामान्य बच्चों से भिन्न थी। उन्हें ध्यान (मेडिटेशन) का अभ्यास करना अत्यंत प्रिय था। प्रारंभ में यह ध्यान एक प्रकार का खेल प्रतीत होता था, किंतु समय-समय पर यह उन्हें इतनी गहन आध्यात्मिक अनुभूति प्रदान करता था कि वे बाह्य संसार से पूर्णतः अनभिज्ञ हो जाते थे। एक बार ध्यान करते समय वे इस प्रकार तल्लीन हो गए कि परिजनों को दरवाज़ा तोड़कर भीतर प्रवेश करना पड़ा और उन्हें सामान्य चेतना में लाने के लिए झिंझोड़ना पड़ा।

यह प्रसंग दर्शाता है कि नरेंद्रनाथ का आध्यात्मिक झुकाव प्रारंभ से ही अत्यंत प्रबल था, जिसने आगे चलकर उन्हें एक महान सन्यासी और विचारक के रूप में प्रतिष्ठित किया।

नरेन्द्रनाथ का नटखटपन 

यद्यपि बालक नरेंद्रनाथ एक गंभीर और आध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे, फिर भी उनके व्यक्तित्व का एक अन्य पक्ष भी था—उनकी बालसुलभ चंचलता और शरारतपूर्ण स्वभाव। वे अत्यंत नटखट और जीवंत स्वभाव के थे, जिन्हें संभालना सरल नहीं था। उनकी अत्यधिक सक्रियता और शरारतों के कारण उनकी देखभाल हेतु दो आया (दाई) नियुक्त करनी पड़ती थीं। कई बार वे इतने अधिक चंचल हो जाते थे कि उन्हें नियंत्रित कर पाना कठिन हो जाता था।

उनकी इस शरारती प्रकृति के बारे में उनकी माँ अक्सर मज़ाक में कहती थीं, "मैंने भगवान शिव से एक पुत्र की प्रार्थना की थी, और उन्होंने मुझे अपना एक भूत भेज दिया है।"

नरेन्द्रनाथ की शरारत की एक किस्सा यह है कि वे अपनी बहनों को चिढ़ाते और जब वे उसे पकड़ने के लिए पीछे दौड़तीं, तो वह भागकर खुले नाले में जा छिपते। वहाँ से मुस्कुराते हुए और मुँह बनाकर उन्हें चिढ़ाते, क्योंकि बहनें वहाँ उसके पीछे नहीं जाती थीं।

छह वर्ष की आयु में नरेंद्रनाथ को एक प्राइमरी स्कूल में भेजा गया। स्कूल में अक्सर बच्चों का मेलजोल विभिन्न स्वभाव के साथियों से होता है, और कुछ ही दिनों में नरेंद्र ने ऐसी भाषा सीख ली जो परिवार को अनुचित और आपत्तिजनक लगी। परिणामस्वरूप, उन्हें उस स्कूल से हटा लिया गया और उनके लिए एक निजी शिक्षक की व्यवस्था की गई।

नरेन्द्र बचपन से ही अत्यंत नटखट और शरारती स्वभाव के थे, जिनका नियंत्रण करना परिवार के लिए अक्सर कठिन होता था। फिर भी, जब वे किसी साधु या संन्यासी को देखते, तो उनके चेहरे पर एक विशेष प्रकार की अलौकिक चमक उभर आती थी। स्वामी विवेकानंद बचपन से ही निडर और साहसी प्रवृत्ति के व्यक्ति थे।





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