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Swami Vivekananda’s Learning Years: A Journey of Knowledge and Wisdom in Hindi

नरेंद्रनाथ (बचपन में स्वामी विवेकानंद का नाम) बचपन से ही बहुत बुद्धिमान थे, लेकिन उतने ही चंचल भी। उनके बारे में कहा जाता है कि अपनी चंचलता के कारण वह कभी भी अपनी डेस्क पर ढंग से बैठते ही नहीं थे। उनकी ऊर्जा और शरारतों से घर और स्कूल दोनों जगह रौनक बनी रहती थी।

वे खेलकूद में रुचि रखने वाले थे। लेकिन इसके साथ-साथ उनके मन में बचपन से ही आध्यात्मिक बातों को लेकर गहरी जिज्ञासा थी। वे हमेशा कुछ नया जानने और समझने की कोशिश करते रहते थे।

नरेंद्र को हिन्दू धर्मग्रंथों जैसे वेद, उपनिषद, भगवद गीता, रामायण, महाभारत और पुराणों में बहुत रुचि थी। वे इन्हें बड़े ध्यान से पढ़ते और समझने की कोशिश करते थे।

उनकी शिक्षा की बात करें तो वे एक ऐसे छात्र थे जिन्हें कई विषयों में दिलचस्पी थी – दर्शन, धर्म, इतिहास, समाज, कला और साहित्य। इसके अलावा उन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत की भी शिक्षा ली थी।

नरेंद्र शारीरिक रूप से भी काफी सक्रिय रहते थे। वे रोज़ व्यायाम करते, खेलों में भाग लेते और अन्य गतिविधियों में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे।

तो आइए, अब हम स्वामी विवेकानंद के शैक्षणिक जीवन के बारे में और विस्तार से जानें।

Swami Vivekananda’s Learning Years


नरेंद्रनाथ की प्रारंभिक शिक्षा

उनकी प्रारंभिक शिक्षा की शुरुआत कोलकाता के "ईश्वरचंद्र विद्यासागर के मेट्रोपॉलिटन इंस्टीट्यूशन" से हुई। लगभग सात साल की उम्र में उनका इस स्कूल में दाखिला हुआ। वे अपने दोस्तों के बीच हमेशा नेता की तरह रहते थे और सभी के प्रिय भी थे। स्वामी विवेकानंद एक बहुत ही होशियार और प्रतिभाशाली छात्र थे। उनकी याददाश्त काफी तेज़ थी। वे मानते थे कि पढ़ाई करते समय मन और ध्यान पूरी तरह उसी पर लगाना चाहिए। यही आदत उन्हें पढ़ाई, योग और ध्यान में सफल बनाती थी। वे किसी भी विषय को गहराई से और एकाग्र होकर पढ़ते थे।

पढ़ाई के साथ-साथ नए-नए खेल नरेन्द्रनाथ को बहुत पसंद थे। वह खुद भी कई खेल बनाकर अपने दोस्तों के साथ खूब मज़ा करते थे। स्कूल में जब लंच की छुट्टी होती, तो वे सबसे पहले अपना खाना खत्म करते और तुरंत खेल के मैदान में पहुँच जाते। अक्सर लड़कों के बीच झगड़े हो जाते, और ऐसे समय में वे नरेन के पास आते, जैसे किसी अदालत में फ़ैसला करवाने आते हों। नरेंद्र अपने साथियों के बीच एक नेता जैसे थे।

बचपन से ही नरेन्द्रनाथ में एक साथ दो काम करने की अद्भुत क्षमता थी। एक बार कक्षा में जब शिक्षक पढ़ा रहे थे, तो नरेन अपने दोस्तों से बातें कर रहे थे। शिक्षक ने उन्हें टोका और कहा कि बताओ, मैं अभी क्या पढ़ा रहा था। सब बच्चे चुप हो गए, लेकिन नरेन ने बिना हिचकिचाए पाठ दोहरा दिया। असल में, वह एक तरफ दोस्तों का मनोरंजन भी कर रहे थे और दूसरी तरफ शिक्षक की बात भी पूरी तरह सुन रहे थे।

नरेन्द्र बचपन से ही बहुत होनहार थे। कभी वह नाट्य मंडली बनाकर अपने दोस्तों के साथ नाटक किया करते, तो कभी व्यायामशाला शुरू करके सबके साथ नियमित तौर पर शरीर का व्यायाम करते थे। उन्होंने तलवारबाज़ी, लाठी चलाना, कुश्ती, नाव चलाना और कई तरह के खेल सीखने शुरू कर दिए थे।

आप सभी पाठक यह बात जरूर याद रखें कि नरेन्द्रनाथ भले ही बचपन में शरारती थे, लेकिन उनका कभी भी बुरी संगत से कोई लेना-देना नहीं था। वे हमेशा गलत रास्तों से दूर रहते थे और सत्यनिष्ठा उनके जीवन का एक अहम हिस्सा थी। नरेन्द्रनाथ बेहद ऊर्जावान थे — दिन भर खेल, पढ़ाई और मनोरंजन में व्यस्त रहने के बावजूद, वे रात में ध्यान लगाने लगे थे। धीरे-धीरे उन्हें ध्यान में अद्भुत और दिव्य अनुभव होने लगे।

सन् 1877 में, जब नरेन आठवीं कक्षा में पढ़ रहा था, उसके पिता काम से मध्य प्रदेश के रायपुर गए और नरेन भी उनके साथ चला गया। फिर 1879 में वह अपने परिवार के साथ कलकत्ता लौट आया। दो साल की पढ़ाई छूट जाने के कारण उसे स्कूल में फिर से दाखिला लेने में थोड़ी परेशानी हुई। लेकिन उसके शिक्षक उसे बहुत पसंद करते थे और उसकी प्रतिभा याद होने के कारण उन्होंने उसे खास छूट दे दी। इसके बाद नरेन ने पढ़ाई में पूरा ध्यान लगाया और सिर्फ एक साल में तीन साल का कोर्स पूरा कर लिया। नतीजा यह रहा कि उसने कॉलेज की प्रवेश परीक्षा अच्छे अंकों से पास कर ली।

स्वामी विवेकानंद प्रेसीडेंसी कॉलेज की प्रवेश परीक्षा में प्रथम श्रेणी (First Division) में अंक प्राप्त करने वाले एकमात्र छात्र थे, जैसा कि उनकी विकिपीडिया जानकारी में उल्लिखित है।


नरेंद्रनाथ का कॉलेज में प्रवेश

शुरुआती पढ़ाई के बाद नरेंद्रनाथ ने कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया। उनकी तेज़ और गहरी पढ़ाई देखकर भारतीय ही नहीं, अंग्रेज़ प्रोफेसर भी उनका बहुत सम्मान करते थे। बाद में नरेंद्र ने जनरल असेंबलीज़ इंस्टिट्यूशन (जो स्कॉटिश मिशनरी बोर्ड ने स्थापित किया था) में पढ़ाई शुरू की।

कॉलेज के दिनों में नरेंद्र की कामयाबी जितनी बड़ी थी, उतनी ही उनकी सोच और बहस करने की आदत भी खास थी। वे वेद, उपनिषद, भगवद गीता, रामायण, महाभारत और पुराण जैसे भारतीय ग्रंथों में दिलचस्पी रखते थे। साथ ही, पश्चिमी दुनिया के तर्कशास्त्र और दर्शन का भी खूब अध्ययन किया। कॉलेज में रहते हुए ही वह धर्म, समाज और जीवन के मुश्किल सवालों के जवाब ढूंढ़ते रहते थे।

कॉलेज में पहले दो साल में उन्होंने पश्चिमी तर्कशास्त्र की लगभग सभी बड़ी किताबें पढ़ ली थीं। तीसरे और चौथे साल वे पाश्चात्य दर्शन और यूरोपीय देशों के इतिहास में पूरी तरह डूब गए थे। उनके प्राचार्य डब्ल्यू. डब्ल्यू. हैस्टी का कहना था कि नरेंद्र जैसी प्रतिभा बहुत ही दुर्लभ होती है, और ऐसे छात्र एक युग में शायद एक बार ही पैदा होते हैं।

Principal W.W. Hastie once said, 'I have travelled far and wide, but I have never yet come across a lad of his talents and possibilities. He is bound to make his mark in life.' (as quoted in A Short Life of Swami Vivekananda by Swami Tejasananda)


Final Words, 

नरेंद्रनाथ के जीवन की यह यात्रा हमें सिखाती है कि सच्ची प्रतिभा कभी छुपती नहीं, चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों। निरंतर जिज्ञासा, ईमानदारी, अनुशासन, और सकारात्मक ऊर्जा यही किसी भी इंसान को महान बनाते हैं, जैसा स्वामी विवेकानंद ने अपने जीवन से दिखाया। बच्चों और युवाओं के लिए नरेंद्रनाथ की कहानी एक प्रेरणा है कि हमेशा सच्चे रास्ते पर चलें, ज्ञान और आत्मविकास की खोज में कभी रुकें नहीं फिर जीत पक्की है।

कहते हैं कि शिक्षा के साथ-साथ चरित्र का निर्माण भी एक पूरी इंसान बनने में मदद करता है। नरेन्द्रनाथ के जीवन में हम देख सकते हैं कि वे जितने होनहार थे, उतने ही सच्चे और पवित्र भी थे। 


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