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Arise, awake, and stop not until the goal is reached.

Swami Vivekananda Quotes on Strength in Hindi

शक्ति यानी जीवन की असली ऊर्जा, वही मूल तत्व जिससे पूरी सृष्टि संचालित होती है। हमारे वेद, उपनिषद और शास्त्रों में बार-बार यह बात कही गई है कि शक्ति के बिना न तो जीवन संभव है, न ही कोई उपलब्धि मनुष्य प्राप्त कर सकता है। यह शक्ति केवल बाहरी ताकत नहीं होती है, बल्कि भीतर की भी होती है जिसमे आत्मबल, साहस, संकल्प और जागरूकता की शक्ति जुडी है। शिव को भी तभी पूर्ण माना गया जब वे शक्ति से जुड़े। वही शक्ति हमारे भीतर भी है, लेकिन अक्सर हम उसे पहचान नहीं पाते। जब तक वह शक्ति जागृत नहीं होती, जीवन में असली पुरुषार्थ नहीं आता है।

इस शक्ति को पहचानने और जगाने का जीवंत मार्ग हमें सबसे स्पष्ट रूप से स्वामी विवेकानंद ने दिखाया। जब भी भारत के युवाओं या साधकों को आत्मबल, साहस और मार्गदर्शन की आवश्यकता हुई, उन्होंने स्वामी विवेकानंद को अपना आदर्श और मार्गदर्शक माना। उनके विचारों, जीवनशैली और शिक्षाओं ने लोगों को भीतर से मजबूत बनने की प्रेरणा दी। उन्होंने केवल भाषण नहीं दिए, बल्कि एक पूरी पीढ़ी को भीतर से झकझोर कर जगा दिया। उनके शब्दों में इतनी आग थी कि उन्होंने युवाओं को सिर्फ़ जीने के लिए नहीं, बल्कि कुछ बड़ा करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने बार-बार कहा कि बल ही जीवन है और निर्बलता मृत्यु। उन्होंने हर युवा को संदेश दिया कि डरने की कोई ज़रूरत नहीं, तुम्हारे अंदर अपार शक्ति है उसे पहचानो, उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।

हमारे शास्त्रों में शक्ति की भावना को व्यापक रूप से अभिव्यक्त किया गया है, किंतु लंबे समय तक ये विचार केवल ग्रंथों के पृष्ठों पर निष्क्रिय शब्दों के रूप में ही सीमित रह गए थे। स्वामी विवेकानंद ने इन शास्त्रीय विचारों में एक नई चेतना और ऊर्जा का संचार किया। उन्होंने इस निष्क्रिय ज्ञान को जीवंत बना कर उसे आम जनमानस, विशेषतः युवाओं और आत्म-चिंतनशील व्यक्तियों के हृदय और मस्तिष्क में गहराई से स्थापित किया।

स्वामी विवेकानंद ने यही बात समझाई थी कि भारत का भविष्य उसके युवाओं में छिपा है, और जब युवा अपनी शक्ति को पहचान लेता है, तो वह सिर्फ़ अपना नहीं, राष्ट्र का भी उद्धार कर सकता है। उन्होंने कहा था, "अगर मुझे सौ ऊर्जावान युवा मिल जाएं, तो मैं भारत को बदल दूंगा” यही संदेश आज भी उतना ही सटीक है जितना उनके समय में था। इसलिए आज ज़रूरत है उस शक्ति को जागने की जो हमारे भीतर पहले से मौजूद है। वही शक्ति हमें आगे बढ़ने, कुछ बड़ा सोचने और उसे पूरा करने की प्रेरणा देती है। यही शक्ति जीवन है।

तो आइए, अब हम स्वामी विवेकानंद के उन प्रेरणादायक विचारों को जानें, जिनमें उन्होंने "शक्ति" यानी आत्मबल, साहस और दृढ़ता को जीवन की मूल आधारशिला बताया है। प्रस्तुत हैं स्वामी विवेकानंद के 'शक्ति' पर विचार, जो न केवल प्रेरणा देते हैं, बल्कि जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने की दिशा भी दिखाते हैं।

Swami Vivekananda Quotes on Strength


Swami Vivekananda Quotes on Strength in Hindi

1. "Strength is life, weakness is death"

"शक्ति ही जीवन है, दुर्बलता ही मृत्यु है" यह स्वामी विवेकानंद का सबसे प्रसिद्ध कथन है। यह वाक्य हमें बताता है कि जो व्यक्ति मानसिक, शारीरिक और आत्मिक रूप से बलवान है, वही सच्चे अर्थों में जीवित है। कमजोर मनुष्य न केवल समाज के लिए, बल्कि स्वयं के लिए भी बोझ बन जाता है।

गीता कहती है कि हमें निरंतर कर्म करते रहना चाहिए, लेकिन बिना आसक्ति के। जब हम अपने कर्मों से आसक्त हो जाते हैं, तो हम बंधनों में पड़ जाते हैं। इन बंधनों से स्वयं को मुक्त करने के लिए हमें आंतरिक शक्ति की आवश्यकता होती है।

हमें अपने भीतर इतनी शक्ति विकसित करनी चाहिए कि हम स्वयं को किसी भी वस्तु या व्यक्ति से detach कर सकें भले ही हमारे भीतर उसे पाने की कितनी भी तीव्र इच्छा क्यों न हो।

स्वामी विवेकानंद का मानना है कि कमजोरी ही हर प्रकार के दुख का मूल कारण है, चाहे वह शारीरिक हो या मानसिक। हमारा शरीर तभी बीमार पड़ता है जब वह अंदर से कमजोर होता है।

ठीक उसी तरह, जब हमारा मन कमजोर होता है, तब ही हम जीवन के सुख-दुखों से अत्यधिक प्रभावित होते हैं।
इसलिए जीवन में स्थिरता और आनंद के लिए, हमें मानसिक और आत्मिक रूप से मजबूत बनना होगा।

वर्तमान समय में हम अक्सर यह खबरें सुनते हैं कि किसी इंजीनियरिंग, मेडिकल, मैनेजमेंट या किसी अन्य छात्र ने आत्महत्या कर ली, कोई छात्र कम अंक आने पर जीवन समाप्त कर बैठा, कोई गरीबी से परेशान होकर आत्महत्या कर लेता है, तो कोई पारिवारिक तनाव में आकर ऐसा कदम उठा लेता है।

क्या आपने कभी सोचा है कि इसके पीछे मनोवैज्ञानिक कारण क्या हैं?

थोड़ी-सी असफलता या दुख झेलते ही एक पढ़ा-लिखा, समझदार व्यक्ति क्यों टूट जाता है और जीवन को समाप्त करने जैसा कठोर निर्णय क्यों लेता है?

इसका एक मुख्य कारण है आंतरिक कमजोरी। जब मन और आत्मा अंदर से मजबूत नहीं होती, तो बाहरी परेशानियाँ हमें हिला देती हैं। आज के युवाओं को यह समझने की ज़रूरत है कि जीवन केवल सफलता का नाम नहीं है, बल्कि संघर्षों में भी डटे रहना ही सच्ची ताकत है। हमें अपने भीतर वह मानसिक और भावनात्मक शक्ति विकसित करनी होगी, जो हमें हर परिस्थिति में संतुलित बनाए रखे। 

सच्चा ज्ञान वही है जो हमें जीवन से भागने नहीं, बल्कि उसका डटकर सामना करना सिखाए। स्वामी विवेकानन्द की शिक्षा यही हमें सिखाती है।  

शक्ति ही जीवन है, और कमजोरी ही मृत्यु।

2. “The world is the great gymnasium where we come to make ourselves strong.”

"यह दुनिया एक विशाल व्यायामशाला है जहाँ हम स्वयं को मजबूत बनाने के लिए आते हैं", स्वामी विवेकानंद का एक प्रेरणादायक उद्धरण है।

इसका मतलब है कि स्वामी विवेकानंद इस दुनिया को एक बड़ी जिम यानी व्यायामशाला की तरह देख रहे हैं। वे कहना चाहते हैं कि इस धरती पर आप, मैं और हम सब जैसे करोड़ों लोग आते हैं, ताकि यहां के अनुभवों से सीखें, मेहनत करें, और खुद को मजबूत और बेहतर बनाते हुए पूर्णता की ऒर ले जाए। यही इस सृष्टि का मूल उद्देश्य भी है।
 
यह दुनिया ऐसी जगह है जहाँ हमें तरह-तरह की मुश्किलें, दुख, चुनौतियाँ और परेशानियाँ मिलती हैं। लेकिन इन्हीं का सामना करके हम अंदर से मजबूत बनते हैं  जैसे कोई इंसान जिम में जाकर कसरत करता है और उसका शरीर मजबूत होता है, वैसे ही इस जीवन में जो भी कठिनाइयाँ आती हैं, उनसे जूझकर हमारा मन और आत्मा मजबूत होती है।

संक्षेप में  कहें तो, दुनिया हमें सिखाने और निखारने की जगह है। हम यहाँ केवल आराम करने या पड़े - पड़े अपने प्रारब्ध भोगने नहीं आये हैं, बल्कि कुछ सीखने और खुद को बेहतर बनाने आए हैं।

3. “Stand up, be bold”

"Stand up, be bold, be strong. Take the whole responsibility on your own shoulders, and know that you are the creator of your own destiny. All the strength and succour you want is within yourselves. Therefore, make your own future." 

अर्थात "खड़े हो जाओ, निडर बनो, मजबूत बनो। पूरी ज़िम्मेदारी अपने कंधों पर ले लो, और यह जान लो कि तुम ही अपने भाग्य के निर्माता हो। तुम्हें जितनी भी शक्ति और सहारा चाहिए, वह सब तुम्हारे भीतर ही है। इसलिए, अपना भविष्य स्वयं बनाओ।"

अर्थात्, इस उदाहरण के ज़रिए स्वामी विवेकानंद हमें यह सिखाना चाहते हैं कि हम आज जिस भी स्थिति में हैं  अच्छी या बुरी  उसके लिए कोई और नहीं, हम खुद जिम्मेदार हैं। यह सब हमारे ही कर्मों और हमारी ही गलतियों का नतीजा है।

लेकिन अक्सर होता यह है कि हम अपनी हालत के लिए दूसरों को दोष देने लगते हैं। ऐसे लोग जो हमेशा दूसरों को दोष देते हैं, वे अंदर से कमजोर और बेबस होते हैं। दूसरों पर दोष डालने की यह आदत हमें और भी कमजोर बना देती है।

जैसा कि हम जानते हैं, स्वामी विवेकानंद की शिक्षा का मुख्य आधार है साहस और आत्म-शक्ति। इसीलिए वे साफ़ कहते हैं कि  अपनी गलतियों के लिए किसी और को दोष मत दो। अपने पैरों पर खड़े हो जाओ और पूरी ज़िम्मेदारी अपने ऊपर लो। यह स्वीकार करो कि  'जो दुःख मैं भोग रहा हूँ, वह मेरी अपनी ही गलती का नतीजा है। और क्योंकि मैंने इसे बनाया है, इसलिए इसे मिटा भी मैं ही सकता हूँ। यह एक ऐसा आह्वान है जो हमारे अंदर की शक्ति को जगाता है।

4. "Be not afraid of anything. You will do marvelous work. It is fearlessness that brings heaven even in a moment.”

"Be not afraid of anything. You will do marvelous work. The moment you fear, you are nobody. It is fear that is the great cause of misery in the world. It is fear that is the greatest of all superstitions. It is fear that is the cause of our woes, and it is fearlessness that brings heaven even in a moment."

"किसी भी चीज़ से मत डरो। तुम अद्भुत कार्य करोगे। जिस क्षण तुम डरते हो, तुम कुछ नहीं हो। डर ही संसार के दुःखों का सबसे बड़ा कारण है। डर ही सबसे बड़ा अंधविश्वास है। डर ही हमारे कष्टों का कारण है, और निडरता ही एक क्षण में स्वर्ग ला सकती है।"

स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि मुझे अपने देश पर, और विशेषकर हमारे देश के युवाओं पर पूर्ण विश्वास है। इसी विश्वास के साथ वे इस प्रकार से आवाहन करते हैं कि किसी भी परिस्थिति में भयभीत हों। आप अद्भुत कार्य करने में सक्षम हैं। जिस क्षण आप भय को स्वीकार करते हैं, उसी क्षण आपकी महानता समाप्त हो जाती है। भय ही संसार के सभी कष्टों का मुख्य कारण है, यह सबसे बड़ा अंधविश्वास है, और हमारे दुःखों की जड़ भी। वहीं निडरता वह गुण है जो क्षण भर में स्वर्ग के समान सुख और सफलता प्रदान कर सकती है। 

इसलिए, सदैव साहस और आत्मविश्वास के साथ अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर रहें।

हमें स्वामी विवेकानंद की वह महान वाणी हमेशा याद रखनी चाहिए, जो जागते हुए भी सोए हुए उन लोगों की चेतना को, जिन्होंने अपना उद्देश्य और जिम्मेदारी भूल गए हैं, तेज गर्जना से झकझोर कर जगाती है। "उठो, जागो और तब तक रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति हो जाए।"

5. “Arise, awake, and stop not till the goal is reached.”

यह प्रेरणा मात्र का उद्घोष नहीं, बल्कि हर एक क्षण हमारे भीतर अंतर्निहित शक्ति को जागृत करने वाला सशक्त आह्वान है, जो हमें निरंतर सक्रिय, सतर्क और दृढ़ संकल्पित रहने के लिए प्रेरित करता है। इसे अपने जीवन का आदर्श बनाकर ही हम महानता की ओर अग्रसर हो सकते हैं।

स्मरण रखें  हम और आप मनुष्य हैं, और मनुष्य होने के नाते हम पर महान कार्यों को करने की नैतिक आध्यात्मिक जिम्मेदारी है। यह कोई साधारण अस्तित्व नहीं, बल्कि ईश्वर द्वारा प्रदत्त एक विशिष्ट उत्तरदायित्व है। यदि हम अपने जीवन का उद्देश्य नहीं पहचानते, अपने कर्म और कर्तव्यों से विमुख रहते हैं, तो हमारा मनुष्य जन्म लेना व्यर्थ है।

क्योंकि हम मनुष्य हैं इसीलिए हमें अब जागना ही होगा, उठना ही होगा। हम चेतना-विहीन पशु के समान गहरी निष्क्रियता में नहीं रह सकते। हमें अपनी अंतरात्मा को झकझोरना होगा, और इसके लिए स्वामी विवेकानंद जैसे महान आदर्श पुरुष का सिंहनाद बार-बार स्मरण करना होगा-

"उठो, जागो और तब तक रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति हो जाए।"

यह केवल एक वाक्य नहीं, बल्कि जीवन को दिशा देने वाला एक अमर मंत्र है, जो हमें हर ठहराव, हर निराशा और हर भ्रम की स्थिति से बाहर निकाल सकता है।

Final Words,

इस लेख के माध्यम से बस इतना ही कहना चाहेंगे यदि आप स्वामी विवेकानंद के और भी प्रेरणादायक विचारों से जुड़ना चाहते हैं, तो जुड़े रहिए हमारे ब्लॉग के साथ। यहां हम आपके लिए ऐसी ही ज्ञानवर्धक और ऊर्जा से भर देने वाली सामग्री लाते रहेंगे।

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